Ek Complicated Scene

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टीवी पर 80 के दशक की एक फिल्म चल रही थी। धर्मेंद्र हीरो थे, मैं भी थोड़ी देर बैठ कर देखने लगा। बचपन की यादें ताज़ा हो जाती हैं। तो साहब सीन यूं था कि खलनायक की धर्मेंद्र के साथ फोन पर झिक-झिक होती है और खलनायक उन्हें अपने घर आने की चुनौती देता है क्योंकि उसके पास हीरो के कुछ आपत्तीजनक फोटो हैं। शाम को धर्मेंद्र उसके घर पहुँचते हैं। खलनायक फोटो का लिफाफा लेकर सोफा पर, जो कि बिलकुल दरवाजे के सामने लगा है बैठा है और उसकी आँखें दरवाजे पर लगी हैं कि सइयाँ अब आए, अब आए। धर्मेंद्र ने अक्खड़ अंदाज़ में एंट्री ली और खलनायक खुश हो गया कि कमीनापन दिखाने का टेम आ गया। कुल जमा मामला ये बनाता था कि खलनायक नायक को अपनी गैंंग में शामिल करना चाहता था जैसे कि आजकल भक्त चाहते हैं ;)…देखिये फिल्म कितनी भी घटिया हो समाज की सच्चाई तो कहीं न कहीं बयान करती ही है। तो नायक अपने भयंकर वाले अंदाज़ में उसे मना कर देता है इसी अंदाज़ में बाद में पुत्र सनी देओल ने कात्या को भी मना किया था। खलनायक के हाथ में लिफाफा है वो उससे डराता है, धर्मेंद्र तो धर्मेंद्र है ऐसी की तैसी लिफाफे की…

खूब तू-तू मैं-मैं होती है और अचानक सोफ़े के पीछे से, अलमारी के अंदर से, पर्दे के पीछे से चारों तरफ से गुंडे निकल कर बाहर आ जाते हैं। खलनायक जितना खुशमिजाज़ होता है इस दुनिया में शायद ही कोई दूसरा प्राणी होता हो, तो ये अपना वाला भी हर खलनायक की तरह हँस-हँस कर पगला जाता है पर इतनी फिल्मों में धर्मेंद्र को देख लेने के बाद भी बेवकूफ़ इतना नहीं समझता कि वो एक मुक्का मार कर आदमी को ज़मीन में गाड़ देता है। वही होता है जो होना था, धर्मेंद्र सबकी मिट्टी-पलीद कर के ये जा वो जा।

इतनी रामकथा सुनाने का मेरा मक़सद यूं है साहब कि वो तो भला हो धर्मेंद्र का जो उसने शाम का कहा और वो शाम को आ भी गया। खलनायक को भी इतना विश्वास था कि उसने बड़े ही कलात्मक तरीके से अपने गुंडे कमरे के चारों तरफ छुपाए फिर खुद सोफ़े पर लिफाफा लेकर बैठ गया…अब खुदा न खास्ता धर्मेंद्र का उस दिन हाजमा खराब हो जाता या फिर उसका मूड ही बादल जाता या फिर कोई और काम आ जाता और वो नहीं आता तो आपको क्या लगता है गुंडे कितनी देर छुपे रहते? खलनायक कितनी देर लिफाफा लेकर इंतज़ार करता? फिर मोबाइल तो थे नहीं उस जमाने में वो संपर्क कैसे करता कि भाई आता हो तो आजा नी तो मैं दूसरे काम देखूँ आज, ये मेरे छोरे भी अलमारी के अंदर से मुझे घूरे जा रहे हैं। गुंडों को अलमारी के अंदर गर्मी तो लगती ही…मतलब बहुत ही परेशान हूँ वो सीन देखने के बाद से कि अगर धर्मेंद्र नहीं आता तो होता क्या? गुंडे क्या अपने ही मालिक को धुनक देते? गुंडे आधे घंटे बाद पूछते इधर से उधर से सर आया क्या? आएगा कि नहीं? हम यहीं बैठें या घर जाएँ? फिर किसी को छोटी-बड़ी कुछ लग जाती तो? बहुत ही भयंकर होती जा रही है संभावनाएं…भला हो धर्मेंद्र का जिसने समय पर आकर सब संभाल लिया और मैं टीवी बंद करके अपने काम में लग गया  फिर भी मुद्दा ज्वलंत है अगर आप लोगों को भी कोई संभावनाएं नज़र आयें तो नीचे कमेंट बॉक्स में डाल जाना, मैं अपनी जिज्ञासा शांत कर लूँगा 😀

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